
स्वयं से प्रेम कैसे करें।
खुद से प्रेम करना और दूसरों से प्रेम करना-ये दोनों बातें एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं। दूसरों के लिए जीना नहीं सीखते तो खुद से भी प्यार नहीं कर सकते और खुद से प्यार नहीं कर सकते तो दूसरों के लिए भला कैसे जीना सीखेंगे।
क्या आपको ऐसा लगता है कि अब आपका जीवन बेकार है आप जीवन में कुछ नहीं कर सकते ? क्या आप अपने आपसे नफरत करने लगे हैं?
खुद से प्रेम करना और दूसरों से प्रेम करना-ये दोनों बातें एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं। दूसरों के लिए जीना नहीं सीखते तो खुद से भी प्यार नहीं कर सकते और खुद से प्यार नहीं कर सकते तो दूसरों के लिए भला कैसे जीना सीखेंगे।
जब हम स्वयं अपने भीतर से खुश और संतुष्ट होते हैं तभी हमारी उपस्थिति दूसरों को भी प्रसन्न कर पाती है।अपने बारे में सोचना कोई अपराध नहीं है, लेकिन न सोचना अवश्य ऐसा त्याग है जिससे किसी का भला नहीं होता।
रोजमर्रा के जीवन से कुछ उदाहरण लेकर इस धारणा को स्पष्ट किया जा सकता है… यानी सभी के पास समस्याओं और शिकायतों का पुलिंदा है, कोई खुश नहीं है।
अपने इर्द-गिर्द मौजूद हर संबंध के बारे में सोच रहे हैं लोग, नहीं सोच रहे हैं तो सिर्फ अपने बारे में। कोई इसलिए परेशान है कि उसका साथी उससे आगे निकल गया, वह वहीं है, कोई सोचता है उसकी तकलीफें कभी खत्म नहीं होंगी, कोई तो इसलिए भी परेशान है कि दूसरे खुश क्यों और कैसे दिखते हैं! कई समस्याएं तो हम केवल इसलिए खडी कर रहे हैं क्योंकि हमारे पास और बडे काम नहीं हैं, सार्थक उद्देश्य नहीं हैं। जीवन सिर्फ रोजी-रोटी कमाने का सामान बनकर रह गया है।
प्रेम डिप्रेशन के विपरीत होता है
आइये वो दस उपायों को बताती हु…, उन्हें आजमाकर देखिए—
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अपनी आलोचना करना अभी से हमेशा के लिए छोड़ दीजिए। फिर कभी मत कीजिएगा!
“To avoid criticism say nothing, do nothing, be nothing.”
आलोचनाओं से बचने के लिए, कुछ ना कहें, कुछ ना करें और कुछ ना बनें। – Aristotle
आलोचना से कुछ नहीं बदलता, इसलिए अपनी आलोचना मत कीजिए और आप जैसे हैं, उसी रूप में खुद को स्वीकार कीजिए।
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अपने आप को मत डराइए, प्लीज। यदि आप खुद से प्रेम करते हैं तो अपने आप को मत डराइए।
“There is no illusion greater than fear.”
डर से बड़ा मोह और माया जाल दुनिया में कोई नहीं।
अपने आप को उन डरावने विचारों से आतंकित करना बंद कीजिए, क्योंकि ऐसा कर आप बस, हालात को बदतर बनाएँगे। राई का पहाड़ मत खड़ा कीजिए।
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सौम्य और दयालु तथा अपने साथ धैर्यवान् बनिए।
आप भी जानते हैं कि धैर्य की शक्ति का एक अच्छा उदाहरण एक बाग होता है। उस बाग की शुरुआत धूल भरी जगह से होती है। फिर आप उसमें कुछ बीज या पौधे लगाते हैं एवं उन्हें सींचते हैं और फिर उनकी देखभाल करते हैं। शुरुआत में लगता है जैसे कोई फायदा नहीं होगा; लेकिन आप उसे करते रहते हैं और धैर्य रखते हैं, तो चीजें बदलेंगी। वह बाग बढ़ेगा और खिल उठेगा।
यदि आप सोचें कि आपका मन उस बाग की तरह है, तो आप यह जान लेंगे कि आपको कैसा बाग चाहिए। आप जीवन में किस तरह की घटनाओं को देखना चाहते हैं और उसके लिए आपको किस तरह के बीज बोने पड़ेंगे? उन बीजों व विचारों को चुनिए, जो ऐसे अनुभवों के बाग का रूप लेंगे, जैसा आप चाहते हैं।
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अपने मन पर रहम करें। आप जानते हैं कि खुद से नफरत करने का मतलब है कि आप अपने आप से नफरत करना आप उन विचारों के लिए खुद से नफरत नहीं करना चाहते हैं।